सीके न्यूज। छोटीकाशी। बीकानेर, 1 अक्टूबर। राजस्थान में बीकानेर और जोधपुर जिले के सेंटर में स्थित नागौर जिले के पास अजमेर-नागौर मार्ग पर बसे कस्बे कुचेरा के पास है एक ऐसा बुटाटी धाम जहां लोग आते हैं हिळते-ढुळते और जाते हैं पैरों पर चलकर। बुटाटी धाम जो यहां 'चतुरदासजी महाराज के मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि काफी वर्षों पूर्व यहां जन्मे एक महान सिद्ध योगी चतुरदासजी वर्षों पहले अपनी चमत्कारिक सिद्धियों से लकवा के रोगियों को मुक्त करते थे। दावा किया गया है कि आज भी देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी यहां लकवा से पीडि़त रोगी आते हैं और सकारात्मक शक्ति लेते हुए ठीक होकर ही जाते हैं। हाल के वर्षों में ही बुटाटी धाम की चमत्कारिक शक्तियों के बारे सुनकर अमेरिका के शिकागो से यहां आयी जेनिफर भी ठीक होकर गयी बताते है। जेनिफर ने यहां 'पॉजिटिव एनर्जी' लेने के बाद बताया था कि एक दिन वह बाइक से कहीं जा रही थी कि सड़क दुर्घटना में पहले उसे फ्रेक्चर हुआ और बाद में देखते ही देखते वह चल नहीं सकती थीं और लकवाग्रसित हो गयीं। जब उन्हें उसके पुरुष मित्र ने इस चमत्कारी स्थान बुटाटी धाम की खोज-बीन करके बताया तो वह यहां आने की जिद करने लगी और यहां आने के बाद उसे काफी 'पॉजिटिव एनर्जी' मिली। जेनिफर ने बताया कि उन्हें यहां काफी अच्छा महसूस हुआ और बुटाटी धाम की दिव्य शक्ति के सहारे ही पुन: वह अपने पैरों पर चल सकने में एकबारगी कामयाब हो गयीं। जेनिफर ने यहां से वापिस अमेरिका जाने से पहले बताया कि वह अमेरिका के लोगों से भी यह बात शेयर करेंगी कि बुटाटी धाम में लकवाग्रसित लोगों को पुन: 'जीवनदान' ही मिलता है। जेनिफर के साथ आए आशुतोष शर्मा ने बताया कि बुटाटी धाम के बारे में उनसे सुनने के बाद से ही जेनिफर यहां आने की जिद कर रही थी इसलिए उन्हें यहां बुटाटी धाम लाया गया था। शर्मा के अनुसार पीडि़त मानवता की सेवा के लिए यहां हर कोई सेवा के लिए तत्पर रहता है।
भगवान विष्णु के उपासक रहे हैं चतुरदासजी महाराज, बुटाटी धाम है साधना व तपोस्थली : रतनू
राजस्थानी के जाने-माने कवि, साहित्यकार, डिंगल के अध्येता हिंगलाजदान रतनू Hinglajdan Ratnu बताते हैं कि बुटाटी धाम संत श्री चतुरदास जी महाराज की साधना एवं तपोस्थलि रही है, जो देव जाति चारण की कविया खांप में जन्मे थे एवं इसी गांव के निवासी थे। उन्होंने बताया कि बुटाटी गांव में 4 घर चारणों के हैं। अनंत विभूषित ब्रह्मलीन संत चतुरदास महाराज भगवान् विष्णु के उपासक रहें हैं। आज से कई वर्षों पूर्व उन्होंने इसी स्थान पर समाधि ली थी एवं समाधिस्थ हो गये थे। जैसा कि विदित है कि चारण देव जाति मानी जाती है एवं इस हेतु वेद एवं इसकी साख भरते हैं। इस जाति के लोगों द्वारा अनेक दिव्य शक्ति का अवतार होता रहा है। उन दिव्य शक्तियों के लोक कल्याण के अनुपम कार्य कर जनमानस एवं पीडि़त मानवता के हितार्थ कार्य किये जाते है।
इन शक्तियों में आदि शक्ति माँ हिंगलाज, आवङ जी महाराज, विश्वविख्यात माँ करणी जी महाराज, संत ईश्वर दास जी, संत नरहरि दास जी, संत स्वामी कृष्णानंद जी सरस्वती ऐसे सैकड़ों उदाहरण जनमानस के मानस पटल पर हैं जिन्होंने दु:ख की ज्वाला में जलती हुई मानव जाति के लोक कल्याण हितार्थ कार्य किये है। उसी श्रृंखला में संत चतुरदास महाराज का अवतार माना जाता है। बुटाटी धाम आज संसार के मानचित्र पर विशिष्ट स्थान रखता है। यहां देश विदेश से लकवा (पैरालिसिस) के रोगियों को आराम मिलता है जो कि संत महात्मा चतुरदास महाराज एवं इस सृष्टि के कर्ता धर्ता भगवान् श्री विष्णु की कृपा से इस लकवा रोग से ग्रसित यहां लेटे हुए आते हैं एवं भगवत कृपा से ठीक होकर अपने पैरों पर चल कर घर लौटते है।
लकवा रोग से मुक्त होने के लिए सात दिन का प्रवास करते हुए सप्त परिक्रमा जरुरी : महेंद्र जांगिड़
बुटाटी धाम कमेटी से जुड़े महेंद्र जांगिड़ बताते हैं कि लकवा के रोग से मुक्त कराने के लिए बुटाटी धाम का यह मंदिर सप्त परिक्रमा के लिए प्रसिद्ध है। यहा लकवा के मरीजों को सात दिन का प्रवास करते हुए रोज एक परिक्रमा लगानी होती है। सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर तथा शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अन्दर लगानी होती है। ये दोनों परिक्रमा मिलकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है। सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है। महेंद्र ने दावा करते हुए कहा कि इस दौरान हवन कुण्ड की भभूति लगाने से धीरे-धीरे बीमारी का प्रभाव कम हो जाता है। शरीर के अंग जो हिलते नहीं है वह धीरे-धीरे काम करने लगते हैं।