बीकानेर (सीके न्यूज/छोटीकाशी)। गुरु जम्भेश्वर ने प्रकृति संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी और उनके अनुयायियों ने भी ऐसा ही किया। दुनिया की सबसे जिम्मेदार और उत्तरदायी आध्यात्मिकता में बिश्नोई परम्परा जी रही है। बिश्नोई समाज ने पर्यावरण और जीव रक्षा को अपना आध्यात्मिक उत्तरदायित्व माना है, यह विश्व की एक बहुत बड़ी घटना है। लोग पर्यावरण संरक्षण की बातें तो बहुत करते हैं परन्तु बिश्नोई समाज ने इसे अपने आचरण में उतारकर दिखाया है, दुनिया को इनसे सीखने की जरूरत है। अब वह समय आ गया है जब नदियों और वनों आदि को हमें मानवीय अधिकार देने होंगे, मनुष्य को इनका बेतहाशा विनाश करने का अधिकार किसने दिया है। उक्त विचार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रमुख विचारक और भारतीय ज्ञान परंपरा के लेखक डॉ कपिल तिवारी ने जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर के तत्वावधान में 'प्रकृति, जीवन और बिश्नोई परंपरा' विषय पर आयोजित वेबिनार में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बिश्नोई पर्यावरण के प्रहरी हैं और वे अपने जीवन की कीमत पर भी इसके परिरक्षण और संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं। तिवारी ने प्रकृति संरक्षण के लिए भक्तिकाल के साहित्य में उल्लेखित निर्देशों पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला। वेबिनार की अध्यक्षता प्रोफेसर (डॉ) करुणाशंकर उपाध्याय, पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई ने की। धन्यवाद ज्ञापन अकादमी के वरिष्ठ सदस्य, सेवानिवृत्त आरएएस अधिकारी बी आर डेलू ने किया। संचालक और संयोजक विनोद जम्भदास और तकनीकी प्रबंधक डॉ लालचंद बिश्नोई रहे। इस वेबिनार को जूम और फेसबुक पेज पर प्रसारित किया गया। इसमें अकादमी के सदस्यों और विषय में रुचि रखने वाले अन्य लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
'दुनिया की सबसे जिम्मेदार और उत्तरदायी आध्यात्मिकता में जी रही है बिश्नोई परम्परा' !