पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर व्यक्ति को अपनी जीवनशैली बनानी चाहिए-शांतिदूत व अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण
बीकानेर (सीके न्यूज/छोटीकाशी)। चाहे तापमान कभी 44 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा रहा हो या बदन को झुलसा देने वाली लूं की तेज हवाएं चल रही हो। आसमान से आग बरसाती सूरज की गर्मी में जहां लोग गाडिय़ों में भी बाहर निकलना पसंद नहीं करते, ऐसी भीषण गर्मी में भी शांतिदूत व अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में पैदल पदयात्रा कर जनता को अध्यात्म द्वारा जीवन सार्थक बनाने की प्रेरणा दे रहे हैं। आचार्य श्री ने खारडा ग्राम से मंगलविहार पथ के दौरान चारों और नजर आते ऊंचे रेतीले धोरे, खेजड़ी आदि के वृक्ष क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को दर्शा रहे थे। लगभग 12 किलोमीटर का विहार का युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण राजेरा ग्राम में पधारे। यहां जैन समाज की भी अनेकों श्रद्धालु निवास करते हैं उनके साथ-साथ आज ग्रामीणों में भी शांतिदूत के आगमन से और उल्लास छाया हुआ था। इस अवसर पर सरपंच महेंद्र गोदारा सहित ग्रामवासियों ने आचार्य श्री का स्वागत किया। इस अवसर पर कोजूराम सारस्वत, गुड्डी देवी ने अपने विचार रखे। विजय, आसकरण, मुकेश, सुरेश पुगलिया, महिला मंडल रेखादेवी आदि बहनों ने गीत का संगान किया। मंगल प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि इस पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर व्यक्ति को अपनी जीवनशैली बनानी चाहिए। कम से कम व्यक्ति जीवन तो अच्छा जिए और पापों से बचें। कोई अगर इस सिद्धांत को ना भी माने तो अच्छा जीवन जीने में क्या नुकसान है। सत्कार्य करने का प्रयास करते रहना चाहिए। जितना जीवन में गुरुओं का योग मिले शास्त्रों का योग मिले ज्ञानार्जन का प्रयास हो और उसके अनुरूप फिर आचरण हो। ग्रंथों से ज्ञान की प्राप्ति तो होती है परंतु जब गुरु-ग्रंथ दोनों का योग मिल जाता है जो सबके लिए दुर्लभ है तो फिर वह ज्ञान भी फलदायी जाता है।